बहन सिस्टर ब्रदर भाई एक बहुत ही खूबसूरत भारतीय समाज में जिए जाने वाला रिश्ता है मां-बाप के बाद शायद नंबर दो यह रिश्ता हमारे समाज में होता है मेरा भी एक मम्मी पापा का परिवार था मेरी दो बहने सुनीता श्रीवास्तव जिसकी शादी काजीपेट में डॉ सुरेंद्र मोहन श्रीवास्तव से हुई थी एवं जिन की एक बेटी निमिषा श्रीवास्तव है मेरी दूसरी बहन नीरू श्रीवास्तव जिसकी शादी श्री अरुण कुमार श्रीवास्तव जी से मथुरा में हुई थी जिनके दो बच्चे हैं सौरभ श्रीवास्तव लड़का है एवं चीनू बेटी है, दिन का विवाह हो चुका है 6 साल पहले मेरी मां की तबीयत खराब हुई थी ब्रेन हेमरेज हो गया था झांसी एक छोटा सा शहर है उत्तर प्रदेश का हालांकि बेसिक सुविधाएं हैं लेकिन बहुत स्पेशियलिटी उम्मीद करना यहां पर बेमानी होगी मैं अपनी मां को ग्वालियर के सहारा अस्पताल में इलाज के लिए ले गया था 7 दिन वहां पर एडमिट रहने के बाद एवं वेंटिलेटर में होने के बाद उनकी मृत्यु हो गई थी इसके बाद पापा मेरे साथ ही झांसी मैं अपने मकान में रहते थे जो हमारा मकान या घर कहा जा सकता है जैसा की आपको विदित है कि जो पास में लोग होते हैं हम उनकी वैल्यू नहीं कर पाते हैं और जो दूर रहते हैं शायद ज्यादा इंटरेक्शन ना होने के साथ कारण उनकी वैल्यू ज्यादा होती है मेरी दोनों बहनों की इस परिवार में अत्यंत महत्वपूर्ण वैल्यू थी और मेरी वैल्यू इस परिवार में लगभग ना के बराबर थी क्योंकि मैं अपने मम्मी पापा के साथ रहता था मेरे दोनों बहने हर रोज फोन करके मेरे मम्मी पापा का हालचाल पूछती थी और अपने भाई के बारे में पूछते किस दिन मेरा भाई ने क्या किया यह दूसरे मायने में कहें कि मेरी जिंदगी में इंटरफेयर करती थी खास तौर से छोटी वाली बहन सुनीता श्रीवास्तव एवं उनका पति डॉ सुरेंद्र मोहन श्रीवास्तव मैंने कई बार पिछले 25 सालों में अपनी बहन से कहा कि आप अपना परिवार देखिए मेरे और मेरे परिवार के बारे में चिंता करने की क्या आवश्यकता है लेकिन बस उनका यह कहना था कि मुझे कुछ नहीं करना सिर्फ मुझे अपने मां बाप की देखभाल करनी है आज मेरे पापा 91 इयर्स के हैं और शुरू से ही मैं बचपन से उनके साथ रहता रहा हूं इसका मतलब है मेरी care और मेंटेनेंस एकदम सही थी कि व्यक्ति 91 साल में भी जिंदा है, मेरे मम्मी पापा दोनों बहनों की फाइनैंशल रुप से हमेशा सहायता करते रहते थे या कहिए अपना समस्त पैसा उन्होंने अपनी दोनों बेटियों की ख्वाहिशों और उनके पति एवं बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में लगा दीया बहने कहती थी कि वह अपने मम्मी पापा से बहुत प्यार करती हैं और मैं उनको कतई नहीं चाहता कतई प्यार नहीं करता यह सरासर झूठ था और रहेगा वह सिर्फ अब मेरे मम्मी पापा यह हमारे मम्मी पापा को अपने कब्जे में करने के लिए यह बातें कहा करती थी और रोजाना फोन किया करती थी यकीन मानिए 25 साल से जब से मोबाइल नेटवर्क शुरू हुआ है जो बहन हर रोज अपने मायके में फोन करती है उसको आप क्या इंटरफेरेंस नहीं कहेंगे सोचिए जरा ?? अब मैं आपको असली बात बताता हूं मेरे पापा जुलाई 2022 में बीमार पड़े उनको कुछ पेट की प्रॉब्लम हो रही थी मैंने एक डॉक्टर को दिखाया पापा बोले ठीक नहीं है मैंने दूसरे डॉक्टर को दिखाया पापा बोले यह भी ठीक नहीं है मैंने तीसरे स्पेशलिस्ट को दिखाया पापा बोले यह भी ठीक नहीं है इसके बाद उनकी तबीयत इतनी खराब हो गई कि वह बेड से उठने लायक नहीं रहे तो मैंने एक झांसी के कमला अस्पताल के इमरजेंसी में भर्ती कर दिया डॉ सौरभ श्रीवास्तव जोकि गैस्ट्रो के डीएम हैं बेस्ट झांसी के नंबर वन डॉक्टर है ने उनका इलाज शुरू किया और मुझसे आईसीयू के चार्जर और दवाइयां वगैरह के लगभग ₹18000 जमा करने के लिए किया मैंने किसी तरह इंतजाम करके ₹18000 जमा किए उनका इलाज शुरू कर दिया मेरी बहनों को मेरे पिताजी के बारे में कोई सूचना नहीं मिल रही थी तो उन्होंने पुलिस पीसीआर में फोन कर दिया कि मेरा भाई मेरे पापा को किडनैप करके अपने घर में रखे हुए हैं पुलिस का फोन आते ही मैंने उन्हें पूरी परिस्थितियां बताएं अपने बारे में पूरा डिटेल बताया अपनी पत्नी के बारे में अपने बच्चों के बारे में और अपने परिवार के बारे में और उन्हें अपने घर में आने के लिए आमंत्रित किया पुलिस ने गहराई से मेरी बात सुनी मुस्कुराई और चली गई अपनी बहनों से उनकी इन हरकतों को मैं बर्दाश्त नहीं कर पाता था कि मेरे परिवार में बहुत इंटरफेरेंस करती रहती थी मैं मुझे मां-बाप के देखभाल का बहुत ज्ञान देती थी मेरा बड़ा जीजा भी और छोटा जीजा भी मुझे अक्सर ज्ञान दिया करते थे पापा को अस्पताल में भर्ती करने के बाद मैंने दोनों बहनों को इसकी सूचना दी दोनों बहनों ने कहा की भैया आप उनका ख्याल रखना हम लोग पहुंच रहे हैं मैंने उन्हें बताया कि हम तीन भाई बहन हैं तीनों मिलकर कंट्रीब्यूट्स करके पापा का अच्छा इलाज करा सकते हैं मथुरा से बड़ी दीदी जियाजी आने के बाद एक शानदार होटल नटराज पोर्टिको में दोनों परिवार ठहरे आपस में जो भी डिस्कशन किया और पापा को देखने नर्सिंग होम में आ गए देखने के बाद मेरे बड़े जीजा जी अरुण कुमार श्रीवास्तव और उनका बेटा सौरभ श्रीवास्तव मेरे घर में आया मैं और मेरी पत्नी से बात करने के लिए यहां पर आते ही उन्होंने कहा कि पापा को अल्सर कैसे हो गया आपने उनकी देखभाल कैसे नहीं की और धमकी दी कि अगर आप देखभाल नहीं करोगे तो हम पुलिस में जाएंगे आप की रिपोर्ट करेंगे और एक बोतल खून का इंतजाम हमने ड्राइवर से करा दिया है एक बोतल खून का इंतजाम आप करिए मेरी पत्नी जिसका ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव है उसने तत्काल एक बोतल ब्लड डोनेट किया और पापा तक पहुंचाया जिसको वह कभी अपनी भाभी नहीं मानते थे उसका मेरे पिता के प्रति यह भावना देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा दोस्तों मेरे पापा 91 इयर्स के इतने साल जीने का मतलब यही होगा कि मैं अपने पापा के साथ बहुत अच्छी तरह रहा हूं अन्यथा वह इतनी समय तक नहीं जीते और आज भी जी रहे हैं इस बात का सबूत खुद है अपने आप में पापा के इलाज के बारे में मैंने कहा कि वर्तमान में आप सबसे बड़े हैं जो भी निर्णय करेंगे हम सब को मंजूर होगा मेरा सजेशन है कि तीनों मिलकर पापा का अच्छा इलाज कराएं उन्होंने कहा नहीं मैं पापा को मथुरा ले जा रहा हूं और इस वास्ते उन्होंने नर्सिंग होम के डॉक्टर से केस को आगरा के पुष्पांजलि अस्पताल जाने के लिए रेफर करा लिया और डिस्चार्ज के लिए पेपर तैयार करा कर डिस्चार्ज करा दिया कलयुग यहां से शुरू होता है अब आप मेरी इस ब्लॉग में आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि आगे की क्या घटना हुई मेरी बड़ी दीदी मथुरा वाली का बेटा एंबुलेंस की जुगाड़ में लग गया मेरे जीजाजी नर्सिंग होम वालों से लड़ने लगे कि आपने इलाज कैसे बंद कर दिया भाई जब डिस्चार्ज करा लिया तो इलाज कैसे करेगा बात बिगड़ती देख कर सुनीता श्रीवास्तव की बेटी निमिषा श्रीवास्तव ने आईसीयू का चार्ज जमा 6 घंटे के गैप के बाद इलाज शुरू हो सके परंतु कुछ समय बाद उसने अपना पैसा वापस ले लिया और और मां बेटी तुरंत ही उस अस्पताल से गायब हो गई अस्पताल इसके बाद वह मुझे लेकर किसी दूसरे अस्पताल में गए बुंदेला करके कोई अस्पताल था बोले बल्लू यहां पर पापा जी को भर्ती करा देते हैं हमने कहा जैसा आप चाहें वैसा करा दें जहां करा दें और यह कहा कि मैं मेरे पास समय नहीं है मैं वापस मथुरा जा रहा हूं मैंने कहा ठीक है जैसे आपकी मर्जी आप बड़े हैं दोस्तों इसके बाद सौरभ श्रीवास्तव जो मथुरा वाली दीदी का बेटा था और श्री अरुण कुमार श्रीवास्तव जो मेरे बड़े जीजा जी थे दोनों जल्दी से तेजी से एक ऑटो करके पता नहीं कहां भाग गए दोस्तों भाग गए ,भाग गए वर्ड यूज कर रहा हूं साथ में मेरे पापा के पेपर भी लेते चले गए डॉक्टरों के 1 घंटे बाद मैंने अपने दोस्त को भेजा उनके होटल में कि वह कृपया पेपर तो मिला दें ताकि मैं अपने पापा का इलाज करा सकूं मेरे पापा इमरजेंसी में बिना किसी इलाज के 10 घंटे तक ऐसे ही बिना इलाज के रहे थे क्रुशल टाइम में मेरे दीदी जियाजी भाग गए अब सुनिए छोटी वाली दीदी सुनीता श्रीवास्तव और उसकी बेटी निमिषा श्रीवास्तव की कहानी पूरी समय दोनों मुंह बंद करें ,सिले बैठे रहे कुछ नहीं कहा कुछ नहीं सुना तमाशा देखते रहे वह बेटी जिसके लिए मेरे पापा पूरी जिंदगी भर मरते रहे उस पर जान छिड़कने रहे सबसे प्यारी बेटी थी हर तरीके से सहायता करते रहे और वह बेटी उसी रात को ग्वालियर से बेंगलुरु फ्लाइट लेकर दोनों मां बेटी भाग गए, भाग गए वह भी भाग गए, मैं और मेरा दोस्त मेरे बचपन का दोस्त मेरी कॉलेज के जमाने का दोस्त अनिल जायसवाल जो मेरी जीने मरने तक हम साथ रहेंगे हर समय एक दूसरे की सहायता के लिए खड़े होते हैं दुनिया की कोई ताकत हमें अलग नहीं कर सकती उसके साथ पापा को कार में लिटा के हम दोनों मित्र कई अस्पताल और नर्सिंग होम में भटकते रहे परंतु किसी ने मेरे पापा को भर्ती नहीं किया सब मना करते रहे उनकी एज को देखते हुए अंत में दिल्ली से एक डॉक्टर से फोन कराने के उपरांत यहां झांसी के मेडिकल कॉलेज गए झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज वहां पर होने भर्ती कराया डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया इसके बाद उन्होंने कहा कि उनका ऑपरेशन नहीं हो सकता आप अपने घर में ले जाएं और इलाज करें और सेवा करें अंत में उन्हें अपने घर पर ले आया और इलाज करा रहा हूं आज की डेट तक मेरे पापा सुरक्षित भी हैं और शायद मैं उम्मीद करूंगा और मुझे विश्वास भी है कि मैं दोबारा उनको उनके पैरों में खड़ा कर दूंगा आज ही मैं अपने पापा से कह रहा था पापा आपकी दोनों प्यारी बेटियां आप की परियां आपको बेहाल अवस्था में छोड़कर भाग खड़ी हुई क्योंकि आप की ऐसी हालत देख कर उन्हें एहसास होने लग गया था शायद मेरे पापा ना बच पाए और आप बबलू ,बबलू बोल रहे थे ना हर समय तो उन्हें यह नागवार गुजरा है कि बबलू ऐसा कैसे सेवा कर सकता है और आपका यह नालायक बेटा जो किसी लायक आप नहीं समझते थे आज आपके साथ खड़ा है आज आपके सामने खड़ा है आपकी जान बचाने की कोशिश में लगा हुआ है दोस्तों यह है मेरी दोनों बहनों नीरू श्रीवास्तव और सुनीता श्रीवास्तव की कहानी कलयुग की बहनों की कहानी बदतमीज बहनों की कहानी ,ना शुक्रगुजार बहनों की कहानी ,पैसे के पीछे भागने की बहनों की कहानी , दिखावटी बहनों की कहानी,अपना उल्लू सीधा करने की बहनों की कहानी हम सब यह तो जानते हैं कि यह आर्थिक युग चल रहा है लेकिन इतना भी खुदगर्जी क्या कि अपने सगे पिताजी के लिए आप 10000 भी नहीं खर्च कर सकते बहुत शर्म की बात है बहुत दुख हुआ यह दिन मेरी जिंदगी का सबसे काला दिन था मैं इस दिन को अपनी जिंदगी से अलग हटाना चाहता हूं काट के फेंक देना चाहता हूं यकीन नहीं करना चाहता हूं लेकिन यही सच्चाई है दोस्तों जिसका सामना मुझे करना पड़ा बेहद दुख के साथ करना पड़ा , यहां पर मुझे किसी पर कोई आक्षेप नहीं लगा रहा हूं सिर्फ सच्ची बात बता रहा हूं जो मेरे जीवन में घटित हुई अगर मेरी इस ब्लॉक से कोई भी आहत हुआ हो तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं





